Wednesday, 8 August 2012

साझी संस्कृति

हाल ही में नज़र आई
एक तस्वीर.....
आप ही बयां कर रही थी
खुद की तक़दीर.....
था के कोई चौराहा..
या के थी कोई गली
पंडित के हाथ छतरी थी
और साथ थे उनके अली...
शायद
होने को था कोई फैसला...
गौर से देखा तो
नीचे  लिखा था फैसले की घडी एक दिन के लिए टली      
चेहरे पर थी उनके मुस्कान
थे हर्षित
यह देख हुआ मन मेरा पुलकित
मनुजों की बात ही क्या?
देवताओं तक ने किया वंदन,
चढ़ाये धुप दीप और "चन्दन".
चालबाजों की दाल इस बार नहीं थी गली
क्योंकि हम  हुए प्रबुद्ध
निकट आई हमारे प्रकृति
जय हो साझी संस्कृति    
जय हो साझी संस्कृति.......... 

                            चन्दन झा

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