जिंदा दीवारें!!!!
अजीब लगा क्या ये आपको सुनकर??
सोचिये कैसा लगा होगा मुझे,
उन जिंदा दीवारों को देखकर.....
आज ही की तो बात है...
नए मकां में.....
हाँ नए मकां में,
अकेली रात में
मैं अपने अकेलेपन के साथ था..
किसी सोच में था
मैं शायद!!
तभी तो नहीं जान पाया था उनका होना,
और दिन की थकन से चूर बस चाहता था सोना.
के कानो में आई कहीं से एक आवाज़,
अरे!!!
देखो-देखो कोई रहने है आया,
पर कैसा है इसका ये आना??
ना तो हमसे मिला और ना खुद को हमसे मिलवाया,
मैंने नज़र उठाकर देखा,
के छोड़ गए हैं अपने निशान....
मकां में,
उन दीवारों पर,
उस घर में रहने वाले बच्चे,
कर गए थे वे तब्दील,
अपने नन्हें हाथों से कुछ ऐसा,
की हो गयीं थीं वो दीवारें,
जिंदा दीवारें...
चन्दन झा