Thursday, 23 August 2012

जिंदा दीवारें........



जिंदा दीवारें!!!!
अजीब लगा क्या ये आपको सुनकर??                                               
सोचिये कैसा लगा होगा मुझे,
उन जिंदा दीवारों को देखकर.....
आज ही की तो बात है...
नए मकां में.....
हाँ नए मकां में,
अकेली रात में
मैं अपने अकेलेपन के साथ था..
किसी सोच में था
मैं शायद!!
तभी तो नहीं जान पाया था उनका होना,
और दिन की थकन से चूर बस चाहता था सोना.
के कानो में आई कहीं से एक आवाज़,
अरे!!!
देखो-देखो कोई रहने है आया,
पर कैसा है इसका ये आना??
ना तो हमसे मिला और ना खुद को हमसे मिलवाया,
मैंने नज़र उठाकर देखा,
के छोड़ गए हैं अपने निशान....                 
मकां में,
उन दीवारों पर,
उस घर में रहने वाले बच्चे,
कर गए थे वे तब्दील,
अपने नन्हें हाथों से कुछ ऐसा,
की हो गयीं थीं वो दीवारें,
जिंदा दीवारें...

                                           
                  चन्दन झा

Wednesday, 22 August 2012

संवेदना


हाय! कहाँ खो गयी है लोगों की संवेदना?

क्यों पराया दुःख देखकर नहीं होती,

इनके दिलों में वेदना??

आज एक पुल बहा......

और,

बह गए लोगों के लाल...

पर लोगों को नहीं आता ज़रा भी ख्याल

के किसी घर है टुटा,

और किसी का कोई अपना छुटा!

सुना हो गया किसी का आँगन,

क्या कभी भर सकेगा यह सूनापन??

पर लोगों के लिए है ये एक खबर..

सिर्फ एक खबर!!!

पर

कब होगा लोगों के दिलों पर असर....

कब जागेगी मानवता

और कब जागेगी संवेदना????

                                चन्दन झा

Friday, 17 August 2012

सफरनामा


आओ आओ एक मज़े की बात बताऊँ...

आपको हम सबसे मैं मिलवाऊं ...

अलग अलग जगहों से आये हैं हम,

अपने साथ छोटा भारत लाये हैं हम...

मिश्री सी है जिनकी बोली, वो मिशिक हैं.. असम से,

प्रशासनिक मामलों में इनकी पकड़ है बेहद अच्छी..... कसम से...

अपूर्व है जिनकी सोच और, जो बच्चों के सेहत और पोषण का करतीं हैं बेहद ख्याल,

उज्जैन है जिनका निज धाम, अपूर्वा है उनका नाम,

पहाड़ों से हैं जिनका नाता, सामाजिक सरोकारों से है जिनका काम,

अलका है उनका नाम,

झारखण्ड के विद्यालयों से पढ़ लिखकर चले आये वे मद्रास,

सभी बातों को देखने का नजरिया है जिनका खास,

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में करेंगे काम राकेश है जिनका नाम.

बिहार के एक गाँव से आया हूँ, साथ अपने

जामिया और सी.आई.ई. के कुछ अनुभव लाया हूँ

कृष्ण कुमार, जानकी राजन, फरहा फारुखी, फरीदा खानम, जावेद हुसैन ये हैं कुछ खास नाम,

जिनके सानिध्य में जाना है मैंने शिक्षा का सही आर्थ और पाया है ये मुकाम...

ये तो थी बातें हमारी... सुनिए अब आगे की कथा न्यारी...

सुरम्य राहों से होकर हम पहुंचे देहरादून,

डालनवाला के कार्यालय में हुआ स्वागत, कहा गया देखो देखो आये नवागत..

अलग अलग माध्यमों से बताया गया

हमें उत्तरकाशी और उत्तराखंड का भौगोलिक विस्तार,

समझाया गया कैसी कैसी हैं सम्यस्याएं अपार.

जिला और राज्य केन्द्रों की मिली जानकारी

कैसे केल्प (C A L P) ने सुझाया है एक विकल्प

लर्निंग गारंटी और E L M से हुए अध्यापक और स्कूल से बेहतर,

सामुदायिक पुस्तकालय से आया समाज “हमारे” निकटतर,

बाल शोध मेले और बाल चौपाल की बात है न्यारी

नन्हें हाथों की देखी हमने कलाकारी...

C C E, E L M और R T E जैसे शब्दों से हुआ एक नया परिचय,

N C F ने बहुत लुभाया,

देश की शैक्षिक समस्याओं के लिए उपाय सुझाया.

कहने को तो हैं बातें कई और अभी तो सामने हैं राहें नयी ....

                                 चन्दन झा

Wednesday, 8 August 2012

साझी संस्कृति

हाल ही में नज़र आई
एक तस्वीर.....
आप ही बयां कर रही थी
खुद की तक़दीर.....
था के कोई चौराहा..
या के थी कोई गली
पंडित के हाथ छतरी थी
और साथ थे उनके अली...
शायद
होने को था कोई फैसला...
गौर से देखा तो
नीचे  लिखा था फैसले की घडी एक दिन के लिए टली      
चेहरे पर थी उनके मुस्कान
थे हर्षित
यह देख हुआ मन मेरा पुलकित
मनुजों की बात ही क्या?
देवताओं तक ने किया वंदन,
चढ़ाये धुप दीप और "चन्दन".
चालबाजों की दाल इस बार नहीं थी गली
क्योंकि हम  हुए प्रबुद्ध
निकट आई हमारे प्रकृति
जय हो साझी संस्कृति    
जय हो साझी संस्कृति.......... 

                            चन्दन झा

अनुत्तरित!!!


क्यों?? आखिर क्यों??
चारों तरफ मचा है,
हाहाकार,
क्यों सुनाई दे रही है ये चीत्कार!!
क्यों? और कब होतें रहेंगे ये धमाके?
देश देगा कुर्बानियाँ कितनी बार?
आज मानवता की यही पुकार,
मिटे नफरत और बढे प्यार.
कभी संसद, कभी गोधरा,
देश बँटेगा कितनी बार?
आज मानवता की यही पुकार........
है हाथ में डिग्री, मन में आकांछा,
फिर भी क्यों हैं युवा बेरोजगार ??
वोट के बदले नोट, क्यों बदल रहे जनाधार?
चारों तरफ है फैला भ्रष्टाचार,
कहाँ खो गए गाँधी और नेहरु के विचार?
क्यों मानव नहीं करता मानवता से आज प्यार?
सोने की चिड़िया कहलाने वाली,
के क्यों हुए ऐसे ऐसे कुलांगार?
जिससे देश हुआ ऋणी,
और रिक्त हुआ कोषागार I
मानवता का पाठ पढाने वाले देश में,
क्यों फैला नफरत का बाज़ार?
आज मानवता की यही पुकार
मिटे नफरत और बढे प्यार I
   
        
                        चन्दन झा