ज़िन्दगी
फेसबुक तो नहीं,
जहाँ हर पल अपनी मर्ज़ी से
स्टेटस चुना जाये और
उसे सोचकर लिखे कोई...
दूर, ऊपर आसमानों
वाला,
वहां बैठा सबकी पेज और
प्रोफाइल पर नज़र रखे हुए है.
वही पेज को लाइक करता है,
और ज़िन्दगी बदल जाती
है...
मैं भी अक्सर सोचता हूँ,
अगर ज़िन्दगी फेसबुक होती
जब मन करता बीते
लम्हों को फिर से देख लेता
जी लेता उन्हें फिर से एक
बार..
या
अगर कुछ ऐसा हो जाता
जो, नापसंद हो मुझे
मेरी पेज पर पेस्ट कर
दिया गया हो,
तो उसे हाईड तो कर ही
देता .
डर भी लगता है यह सोचकर कि क्या होता??
कभी
कोई रिश्तागर मुझे अनफ्रेंड कर देता तो..
हैरत होती है !!
कैसे लोग कमेंट बॉक्स में
टाइप करने के,
बाद भी, सच को एडिट कर देते हैं.
छुपा लेते हैं अपने ख्याल और जज़्बात.
न चाहते हुए भी
लोगों की बातों को लाइक
करते हैं
ताकि झूठे रिश्ते बने
रहें...
अच्छा ही है,
ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी ही है फेसबुक
नहीं....
चन्दन झा
बहुत सुन्दर कविता है चन्दन!!
ReplyDeleteसच है !! ज़िन्दगी, ज़िन्दगी ही रहे तो अच्छा है, फेसबुक बन जाने पर तोह इस का स्टेटस ही खराब हो जायेगा !!
'बच्चे हमारे अहद (दौर) के चालाक हो गए
जुगनू को रौशनी में पकड़ने की जिद करें !!''
Facebook to fakebook hai... Ya aaj ke zamaane mein phenkbook... Jis par fake ne ki ya phenk ne koi limit nahi.. Lekin asal zindagi mein dono ki limit hoti hai.. Bht khoob likha Chandan sir, very simple and creative.
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