पत्थर
कहते ही
मन में आती है कठोरता
और आता है खुरदरापन..
लेकिन कल शाम
नदी की पेटी में कुछ पत्थरों
को देखा....
वक़्त के साथ आती लहरों ने,
बदल दिया था उन्हें,
उनके खुरदरेपन को
चिकनेपन में..
तभी तो उन पत्थरों के पास
बच्चे खेल रहे थे
बना रहे थे घर और घरौंदे,
था वह उनके खुशियों का आशियाना,
उनकी मासूम हंसी का ठिकाना...
कल फिर लौटेंगे ये नन्हें-मुन्ने,
और लौटेगी खुशियाँ इनके साथ
इनके पास होंगे सपने नए,
अपने अपने घर को बेहतर
बनाने के लिए
उसे सजाने के लिए
इसी तरह
दूर हो रहा था उन पत्थरों का
एकाकीपन..
कुछ
खुरदरे इंसानों से
भले हैं ना ये
पत्थर...
क्योंकि
वे अपने आपको
बदल नहीं पाते हैं
और रह जाते हैं अकेले...
तभी तो मन में लिए शिकायतें,
अपने रूखेपन और खुरदरेपन के साथ...
अकेले ही चले जाते हैं....
कहते ही
मन में आती है कठोरता
और आता है खुरदरापन..
लेकिन कल शाम
नदी की पेटी में कुछ पत्थरों
को देखा....
वक़्त के साथ आती लहरों ने,
बदल दिया था उन्हें,
उनके खुरदरेपन को
चिकनेपन में..
तभी तो उन पत्थरों के पास
बच्चे खेल रहे थे
बना रहे थे घर और घरौंदे,
था वह उनके खुशियों का आशियाना,
उनकी मासूम हंसी का ठिकाना...
कल फिर लौटेंगे ये नन्हें-मुन्ने,
और लौटेगी खुशियाँ इनके साथ
इनके पास होंगे सपने नए,
अपने अपने घर को बेहतर
बनाने के लिए
उसे सजाने के लिए
इसी तरह
दूर हो रहा था उन पत्थरों का
एकाकीपन..
कुछ
खुरदरे इंसानों से
भले हैं ना ये
पत्थर...
क्योंकि
वे अपने आपको
बदल नहीं पाते हैं
और रह जाते हैं अकेले...
तभी तो मन में लिए शिकायतें,
अपने रूखेपन और खुरदरेपन के साथ...
अकेले ही चले जाते हैं....
चन्दन झा
Good!
ReplyDeleteचन्दन बहुत सुन्दर कविता लिखी है पढ़कर अपनी कठोरता का एहसास हुआ.
ReplyDeleteधन्यवाद
Sunder :-)
ReplyDeletereally nice Kavita. bas jaari rakhiyega ye prayas.
ReplyDelete@ प्रतिभा जी, @ आशुतोष भाई, @ भंडारी सर, @ जगमोहन सर,
ReplyDeleteआपलोगों ने जिस तरह से मेरा उत्साह बढाया है उसके लिए धन्यवाद...
Bht khoob sir..
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